भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पढ़ना चाहता हूँ / सुभाष नीरव
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:10, 18 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = सुभाष नीरव }} <poem> मैं पढ़ना चाहता हूं एक अच्छी कव...)
मैं पढ़ना चाहता हूं
एक अच्छी कविता।
कविता
कि जिसे पढ़ कर
खुल जाएं
बाहर-भीतर के किवाड़
मन का कोना-कोना
गमकने-महकने लगे
ताज़ी हवा से।
कविता
कि जिसे पढ़ कर
मन के अंधेरों में
उतर आए
रोशनी की लकीर।
पढ़ना चाहता हूं मैं
एक अच्छी कविता।
एक ऐसी कविता
जो उतरे मेरे भीतर
पहाड़ों पर से
जैसे उतरते हैं घाटियों में
जल-प्रपात
अपने मधुर संगीत के साथ।
कविता
तुम आना
तो आना
इसी तरह मेरे पास।