भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पण्डित-पतरा / रामदेव भावुक" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामदेव भावुक |अनुवादक= |संग्रह=रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 3: पंक्ति 3:
 
|रचनाकार=रामदेव भावुक
 
|रचनाकार=रामदेव भावुक
 
|अनुवादक=
 
|अनुवादक=
|संग्रह=रहंस के जीभ तरासल छै / रामदेव भावुक
+
|संग्रह=हंस के जीभ तरासल छै / रामदेव भावुक
 
}}
 
}}
 
{{KKCatAngikaRachna}}
 
{{KKCatAngikaRachna}}

02:42, 8 जून 2016 के समय का अवतरण

झूठ लीखल सब पण्डित के पतरा मे छै।
साँच लीखल सुहागिन के अँचरा मे छै।

स्नेह स्वाती बरसयतै नयन के गगन,
प्यासल मन के पपीहा असरा मे छै।

बिना घास के धेनु गाय न्याय के,
रोज दूहै छै ऊ हिम्मत जेकरा मे छै।

जेकर सत्ता के सीमा नै दुनिया मे छै,
सबके सीमा ओकरे खाता-खेसरा मे छै।

पीड़ पिलकै जे भावुक छै ओकरे पता,
जलन केतना जीवन के जतरा मे छै।