Last modified on 8 जून 2016, at 02:42

पण्डित-पतरा / रामदेव भावुक

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:42, 8 जून 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

झूठ लीखल सब पण्डित के पतरा मे छै।
साँच लीखल सुहागिन के अँचरा मे छै।

स्नेह स्वाती बरसयतै नयन के गगन,
प्यासल मन के पपीहा असरा मे छै।

बिना घास के धेनु गाय न्याय के,
रोज दूहै छै ऊ हिम्मत जेकरा मे छै।

जेकर सत्ता के सीमा नै दुनिया मे छै,
सबके सीमा ओकरे खाता-खेसरा मे छै।

पीड़ पिलकै जे भावुक छै ओकरे पता,
जलन केतना जीवन के जतरा मे छै।