Last modified on 18 जुलाई 2020, at 18:40

पण्डित रविशंकर / रवीन्द्र भारती

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:40, 18 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र भारती |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मात्राओं की काया में अक्षरों के होते विसर्जित
फूटता है जिस राग का रूप
उसी रूप के हैं पण्डित रविशंकर ।

अपनी लय में जब आते थे
हो जाते अपने से छह गुन, आठ गुन ऊँचे
समान भाव से पानी में, हवा में लगते थे तैरने
दबी हुई मन के भीतर लोगों की कितनी ही बातें
पहुँचने को आतुर हो जाती थीं
अपने प्रिय के कानों में ।

मैंने उन्हें जब भी बैरागी तोड़ी, भैरव ठाठ में देखा
राग के अलग-अलग टुकड़ों, अलग-अलग अंग में देखा
चाहा उतार लूँ कैमरे में
ख़ुशबू कि उतर नहीं पाई, उतर गई फूलों की छवि
दीवाल पर टाँगने के लिए
मेरे पास नहीं हैं पण्डित रविशंकर ।