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"पतंगें / प्रताप नारायण सिंह" के अवतरणों में अंतर

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('नील गगन में चढ़ती जातीं पंख तितलियों सी फहराती उड़...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
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नील गगन में चढ़ती जातीं  
 
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पंख तितलियों सी फहराती  
 
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अपने संग समस्त,
 
उड़ानें इसकी रहीं अनंत!
 
उड़ानें इसकी रहीं अनंत!
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22:36, 30 मार्च 2023 के समय का अवतरण

नील गगन में चढ़ती जातीं
पंख तितलियों सी फहराती
उड़ती हैं उन्मत्त,
पतंगें कितनी हैं जीवंत!

चित्रकार की भरी तूलिका
जैसी फिरतीं नभ मंडल में
रंग- बिरंगी छवि उकेरतीं
दिशा- दिशा, अंचल- अंचल में
होकर ज्यों आसक्त,
रँगा है देखो पूर्ण दिगंत!

उँगली से है डोर बँधी पर
संचालित यह धड़कन से
उठना- गिरना, झुकना- मुड़ना
होता सब साधक- मन से
रोम- रोम अनुरक्त,
बरसता उर में मृदुल बसंत!

मात्र नहीं कागज का टुकड़ा
कर में युग की संस्कृति बाँधे
सिर्फ नहीं यह कच्ची डोरी
संस्कार सदियों की साधे
अपने संग समस्त,
उड़ानें इसकी रहीं अनंत!