Last modified on 11 अक्टूबर 2008, at 20:47

पता नहीं कि वो किस ओर मोड़ देगा मुझे / ज्ञान प्रकाश विवेक


पता नहीं कि वो किस ओर मोड़ देगा मुझे
कहाँ घटाएगा और किसमें जोड़ देगा मुझे

मैं राजपथ पे चलूँगा तो और क्या होगा
कोई सिपाही पकड़ के झिंझोड़ देगा मुझे

पतंग की तरह पहले उड़ाएगा ऊँचा
फिर उसके बाद वो धागे से तोड़ देगा मुझे

अमीरे-शहर के बरअक़्स तन गया था मैं
वो अब कमान की मानिंद मोड़ देगा मुझे

वो इत्र बेचने वाला बड़ा ही ज़ालिम है
मैं फूल हूँ तो यक़ीनन निचोड़ देगा मुझे.