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पते पर जो नहीं पहुँची उस चिट्ठी जैसा मन है / आनंद कुमार ‘गौरव’
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पते पर जो नहीं पहुँची
उस चिट्ठी जैसा मन है
रिक्त अंजली सा मन है
आहत सब परिभाषाएँ
मुझमें सारी पीड़ाएँ
मौन को विवश वाणी सी
बुझी अनगिनत प्रतिभाएँ
आस का गगन निहारती
खो गई सदी सा मन है
मीरा में भजन सा बहा
राधा में गगन सा दहा
बाती तो नित बाली पर
मंत्र मौन अनकहा रहा
दिवस दोपहर बुझा-बुझा
शाम बाबरी-सा मन है
मीठी यादों से छन-छन
उभरे ज़ख़्मों के रुदन
दमन कालजयी हो गए
नीलामी पर चढ़े नमन
अधरों पर जो सजी नहीं
उसी बाँसुरी-सा मन है