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पत्तों को दरख़्तों से जुदा होने न देगी / फ़ुज़ैल जाफ़री
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पत्तों को दरख़्तों से जुदा होने न देगी
ये ज़ुल्म तो सावन में हवा होने न देगी
अंदाज़ा करो ख़ुद कभी उस से बिगड़ कर
ताक़त है बदन में तो ख़फ़ा होने न देगी
हर लम्हा नई मेज़ नए खानों की ख़ुश्बू
दुनिया मुझे पाबंद-ए-वफ़ा होने न देगी