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पत्नी सोते-सोते मुस्कराई / देवेंद्रकुमार

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पत्नी
सोते-सोते
मुस्कराई
मां कसम!
मेरी तो
जान पर बन आई
-इस वक्त
आधी रात को
कौन है इसके भीतर?

सुबह दिखाएगी
तेवर
सारा घ्ज्ञर बेघ्ज्ञर
वही झनक-पटक
काम की बकबक।

प्यालियों में भरा
जलतरंगी सुख
कब का
गंदी नालियों में
बह गया,
घिसकर सब
हो गया
गोल-बेमोल

इसकी यह हिम्मत!
मैंने उसे
झिंझोड़ दिया।
कांपकर जाग गई
मुझे देखते ही
मुस्कान भाग गई
आंखें थीं एकदम
खाली।

कितनी मक्कार!
बेहद खबरदार!
आंसुओं के
बहाने
सब कुछ धो-धुला दिया।

और अब
उसके आंसू
किरचों की तरह
मुझमें गड़ रहे थे
बोलों के गोल पत्थर
बड़ी बेरहमी से
पड़ रहे थे।

क्या करता
बहाना बनाकर
बहलाया
न जाने कब से उलझे
बालों को
बेमन से सहलाया,
लेकिन किसी भी तरह
फिर
नींद से होकर
मुस्कान तक
नहीं ले जा पाया।

हां, सोते-सोते जागी
मुस्कान को
पोंछकर
आंसुओं तक पहुंचाना
अवश्य आ गया है,
मेरी छोड़िये
पूरी दुनिया को
यही खेल
भा गया है!