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पथिक – घन / इंदिरा शर्मा

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ये अजाने पथिक – घन
नभ में घूमते घनश्याम से
चल रहे हैं साथ मेरे
सुभग घन , मन - वलय घेरे
तू बनी रे चातकी
मन प्राण मेरे |
तृप्ति की संपुष्टि में ये
चंचुपुट उन्मुक्त तेरे ,
घन बरस तू , स्वाति के नक्षत्र में शुभ
जलधि बन तृप्त कर दे , कंठ सूखे |
नभ में घूमते ये तृप्ति के जल घूँट
पी ले |
तू बनी रे चातकी
मन प्राण मेरे |
ये अजाने पथिक घन
चल रहे हैं साथ मेरे |