भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पद / 7 / श्रीजुगलप्रिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नैन मोहन रूप छकेरी।
सेत स्याम रतनारे प्यारे ललित सलोने रँग रँगे री॥
बाँकी चितवनि चंचल तारे मनो कंज पै खंज अरे री।
‘जुगल प्रिया’ जाके उर भाये अधिक बावरे सोई भये री।