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पनघट पर नयनों की गागर मैं छलकाती रे / चन्द्रगत भारती

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व्यथा किसी से कुछ भी अपनी कब कह पाती रे
आती है जब याद तुम्हारी बेहद आती रे।।

देख तुम्हारी छवि को ही ये सूरज आँखे खोले
सोंच तुम्हें बेसुध हो जाती जब कोयलिया बोले
पनघट पर नयनों की गागर मैं छलकाती रे।।
आती है जब---
आ जाओ हरजाई वरना तुमको दूंगी गाली
बिना तुम्हारे जग लगता है बिल्कुल खाली खाली
और मस्त पुरवायी दिल मे आग लगाती रे।।
आती है जब----
मैं हूं प्रियतम प्रेम दिवानी जबसे सबने जाना
बुलबुल मोर पपीहा निशदिन कसते मुझपर ताना
मुई चाँदनी देख मुझे बस मुंह बिचकाती रे।।
आती है जब---

मुझे गुलाबी भी दिखता है तुम बिन बिल्कुल काला
तुम दीपक हो इस जीवन के आकर करो उजाला
तुम बिन साजन जली जा रही जैसे बाती रे।।
आती है जब---