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परम्परा के खिलाफ / प्रताप सहगल

जब मैं पैदा हुआ
मेरे कन्धों पर चढ़ा हुआ था एक बूढ़ा
बढ़ी शेव
झुकी गर्दन, फटेहाल
अब वह बूढ़ा मुझे ओढ़कर
मेरी ही ज़ुबान पर नाचना चाहता है
यह साज़िश है उसकी
मेरी आवाज़ के खिलाफ़
मैं नहीं हो सकता उसका हिस्सेदार.