परम प्रेम-आनंदमय दिय जुगल रस-रूप।
कालिंदी-तट कदँब-तल सुषमा अमित अनूप॥
सुधा-मधुर-सौंदर्य-निधि छलकि रहे अँग-अंग।
उठत ललित पल-पल विपुल नव-नव रूप-तरंग॥
प्रगटत सतत नवीन छबि दोऊ होड़ लगाय।
हार न मानत जदपि, पै दोऊ रहे बिकाय॥
नित्य छबीली राधिका, नित छबिमय ब्रज-चंद।
बिहरत बृन्दा-बिपिन दोउ लीला-रत स्वच्छंद॥