Last modified on 6 अक्टूबर 2008, at 13:20

परसाई जी की बात / नरेश सक्सेना

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:20, 6 अक्टूबर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश सक्सेना |संग्रह= }} पैंतालिस साल पहले, जबलपु...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पैंतालिस साल पहले, जबलपुर में

परसाई जी के पीछे लगभग भागते हुए

मैंने सुनाई अपनी कविता

और पूछा

क्या इस पर ईनाम मिल सकता है

"अच्छी कविता पर सज़ा भी मिल सकती है"

सुनकर मैं सन्न रह गया

क्योंकि उस वक़्त वह छात्रों की एक कविता प्रतियोगिता

की अध्यक्षता करने जा रहे थे


आज चारों तरफ़ सुनता हूँ

वाह-वाह-वाह-वाह, फिर से

मंच और मीडिया के लकदक दोस्त

लेते हैं हाथों-हाथ

सज़ा जैसी कोई सख़्त बात तक नहीं कहता


तो शक होने लगता है

परसाई जी की बात पर नहीं

अपनी कविता पर