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परहित चिंतन करें / प्रेमलता त्रिपाठी

परहित चिंतन धरें भाव जो, वे कुविचार नहीं करते।
धन वैभव पद लोलुपता को, अंगीकार नहीं करते।

दुख में छोड़े साथ नहीं जो, कहलाते सच्चे साथी,
मीत मिले ऐसा यदि उनसे, दुर्व्यवहार नहीं करते।

मन वाणी में शुचिता जिसके, करें नहीं आडंबर
मिथ्या पथ स्वार्थी तन-मन से, वे प्यार नहीं करते।

सोना तपकर और निखरता, सुजन निखरते हैं दुख में,
नहीं तपे जो विरह-अनल में, वे श्रंृगार नहीं करते।

पथ पर बिखरे काँटों का क्या, कदम हमारे अपने हैं,
शूल चुभेंगे निश्चित ही यदि, हम सुविचार नहीं करते।

भटक रही मानवता को यदि, सुपथ दिखाना है हमको,
मृगतृष्णा में डूब रहे क्यों, उचित सुधार नहीं करते।

सीख सदा यह श्रेष्ठ जनों की, बिना कर्म हम नहीं सफल,
प्रेम कर्म ही धर्म यहाँ पर, क्यों साकार नहीं करते।