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पराजय है याद / अज्ञेय

भोर बेला--नदी तट की घंटियों का नाद।
चोट खा कर जग उठा सोया हुआ अवसाद।
नहीं, मुझ को नहीं अपने दर्द का अभिमान---
मानता हूँ मैं पराजय है तुम्हारी याद।

काशी, 14 नवम्बर, 1946