Last modified on 8 अक्टूबर 2008, at 07:57

पराजय है याद / अज्ञेय

रजनी.भार्गव (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 07:57, 8 अक्टूबर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह=सन्नाटे का छन्द / अज्ञेय }} <poem> भोर ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भोर बेला--नदी तट की घंटियों का नाद।
चोट खा कर जग उठा सोया हुआ अवसाद।
नहीं, मुझ को नहीं अपने दर्द का अभिमान---
मानता हूँ मैं पराजय है तुम्हारी याद।