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पराजित नायक की दिनचर्या और उसकी सीख / अरुण देव

मिलने से बचता हूँ
सामने पड़ने पर कतराकर निकल जाता हूँ

मन नहीं करता किसी से बात करने का
किसी की बातें सुनने का

लड़ने-झगड़ने का तो बिलकुल ही नहीं
हाँ भाई, आप ही ठीक हैं
अब यहाँ से विदा लें
या मैं ही चला जाता हूँ

बच्चे अच्छे लगते हैं
एकान्त अच्छा लगता है

चिड़िया ने घास-फूस-तिनको से
अपना घोंसला तैयार किया है
उनसे उमगते शिशुओं की चिन्ता रहती है
कहीं गिर न जाएँ

पूरा चन्द्रमा
काली रातों में चमकते तारे
जल से उठते सूरज की बिखरी लालिमा अच्छी है

जो भी मिल जाए खा लेता हूँ
पहन लेता हूँ
चुप रहता हूँ

पौधों को पानी देता हूँ
फूलों पर पड़ी धूल साफ करता हूँ

किताबों के पन्ने पलटता हूँ
कोई अच्छी चीज मिलती है डूब कर पढ़ता हूँ
जबरन नहीं पढ़ा जाता

हूँ, हाँ, करता हूँ
वहाँ से उठकर चल देता हूँ

काली चाय पीता हूँ
चीनी कम करता जा रहा हूँ

सुबह टहलता हूँ
ख़ुद के साथ टहलता हूँ
नहर में पानी के साथ-साथ

एक रोज़ पेड़ के नीचे एक कच्चा आम मुझे मिला
मैं तो भूल ही गया था कि हर चीज़ ख़रीदी-बेची नहीं जाती
धरती का नागरिक होने के नाते
आप के लिए बहुत कुछ है
बशर्तें आप उनका व्यापार न करें

अख़बार एकाध मिनट में पढ़ लेता हूँ
चैनलों को बदलता रहता हूँ
अतियों को सुनता हूँ
यह नशा आख़िर कब उतरेगा ?

कभी-कभी रात में नीद उचट जाती है
उठकर कोई बिसरी हुई भूल याद करता हूँ
उससे जुड़ी हुई बातें याद आती हैं

कहीं बाज़ार में ज़िन्दा शव घसीटा जा रहा है
पीछे-पीछे पत्थर फेंकता हुजूम है एक

कभी सपने में वह गली दिख जाती हैं जहाँ से गुज़रते हुए
किसी की धूप तन पर पड़ती थी
कोई पुराना गीत मन में बजता है
गूगल में उसे तलाशता हूँ

पर वहाँ उसे सुनना अच्छा नहीं लगता

बच्चे जब कोई अच्छा प्रश्न पूछते हैं, ख़ुश होता हूँ
प्रश्न अभी बचे हैं
और पूछे जा रहें हैं

उनसे कहता हूँ संशय रखो
दूसरे पक्ष की ओर से भी सोचो

उनसे बचो
जिन्होंने रख दिया है ख़ुद को गिरवी
किसी विचार या व्यक्ति के हाथों में ।