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पराधीनता-निशा कट गयी / गुलाब खंडेलवाल

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पराधीनता-निशा कट गयी, स्वप्न ब्रिटिश-साम्राज्य हुआ है
पहली बार आज ही अपने घर में अपना राज्य हुआ है
. . .
पलटा दिन, इतिहास, भाग्य ने पुन: आज अँगड़ाई ली है
प्रथम बार खुल गयी सवा मन की श्रृंखला कलाई की है
पराधीनता की वह रजनी, पूछो मत कैसे काटी है
भूल न पाती लिये हृदय में घाव खड़ी हल्दीघाटी है
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आओ लौट, सुभाष! न अब दर-दर की ठोकर खानी होगी
आज तुम्हींको लाल किले पर विजय-ध्वजा फहरानी होगी
आज अमर कवि के स्वप्नों का नंदन उतर पड़ा है भूपर
हिमपति खड़ा दहाड़ रहा है किये तिरंगा झंडा ऊपर