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परिचय / जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’

हूँ हितैषी सताया हुआ किसी का,
          हर तौर किसी का बिसारा हुआ .
घर से हूँ किसी के निकाला हुआ,
          दर से किसी के दुत्कारा हुआ.
नजरों से गिराया हुआ किसी का,
          दिल से किसी का हूँ उतारा हुआ.
अजी, हाल हमारा हो पूछते क्या!
          हूँ मुसीबत का इक मारा हुआ.