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परीक्षा / प्रतिभा सक्सेना

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परीच्छा अहै बहुत भारी !इहाँ देखौ कौने हारी!
   मात-पिता के माथ नवाइल षड्मुख तुरत पयाने,
चढि मयूर वाहन पल भर में हुइ गे अंतरधाने!
परिल सोच में गनपति ,मूसा देखि वियाकुल भइले,
एतन भारी बदन पहिल, कइसन परिकम्मा कइले!
कौन विधि साधौं पितु महतारी!
वेद-पुरान ग्रंथ सुमिरे कोऊ उपाय मिलि जाई!
आपुन बुद्धि भरोसो करि ई बाजी जीतौं जाई!
हँसि परनाम किहिल दोउन को विधिवत करि परिकम्मा!
सम्मुख आइल चरन परस फिर बोले पाइ अनुज्ञा!
 'दोउ तुम तीनि लोक ते भारी!

 तिहुँ लोकन की परकम्मा सम माय-पिता की भइली,
सबहि लोक इन चरनन में देखिल अस बानी कहली!'
'धन-धन पूत , बड़ो सुख दीन्हों तुहै बियाहिल पहिले,
सब लोकन में बुद्धि प्रदाता ,विघ्न विनाशक भइले!
अब तुम्हरे बियाह की बारी!'