Last modified on 23 जनवरी 2011, at 03:21

पर प्राण तुम्हारी वह छाया / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

मैंने न कभी देखा तुमको,
पर प्राण, तुम्हारी वह छाया
जो रहती है मेरे उर में
वह सुंदर है, पावन सुंदर !

मैंने न सुना कहते तुमको
पर मेरे पूजा करने पर
जो वाणी-सुधा बरसाती है
वह सुंदर है, पावन सुंदर !

मैं उस स्पर्श को क्या जानूँ
पर मेरी गीली पलकों पर
जो मृदुल हथेली फिरती है
वह सुंदर है, पावन सुंदर !

मैंने न कभी देखा तुमको,
पर प्राण, तुम्हारी वह छाया
जो रहती है मेरे उर में
वह सुंदर है, पावन सुंदर !