भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पर सहलाते / चंद्र रेखा ढडवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तितली के
पर सहलाते
उसकी उँगलियों के
 पोरों पर
रंग आ जाते हैं / सहलाता है वह
उन्मत्त-सा फिर-फिर
और उसकी हथेली पर
रह जाता है
बुच्चा-सा इक जीव