Last modified on 22 मई 2011, at 05:54

पहचानते हुए भी / नीरज दइया

Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:54, 22 मई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>मैं गफलत में रहा तु…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मैं गफलत में रहा
तुम लगा-लगा कर मुखौटे
रचते रहे
नित नए स्वांग ।

दूर रख कर सच से
सिद्ध किए तुमने स्वार्थ
और आज मैं
पहचानते हुए भी तुम्हें
तुम्हारे मुखौटे उतारने की बजाय
स्वयं मुखौटा लगाने की सोचता हूं ।

अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा