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पहचानपत्र / महमूद दरवेश / विनोद दास

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लिख लो —
मैं एक अरब हूँ
और मेरे पहचानपत्र का नंबर है पचास हज़ार
मेरी आठ औलादें हैं
और गर्मियों के बाद नवीं आनेवाली है ...।
क्या आपको गुस्सा आ रहा है ?

लिख लो —
मैं एक अरब हूँ
एक खदान में अपने साथी मज़दूर के साथ काम करता हूँ
मेरी आठ औलादें हैं
मैं चट्टानों को तोड़कर
उनके लिए रोटी लाता हूँ
कपड़े-लत्ते और कॉपी-किताबें लाता हूँ
तुम्हारी इमदाद के लिए मैं तुम्हारी जी हुज़ूरी नहीं करता
न ही तुम्हारे कमरे के आगे
अपने को छोटा महसूस करता हूँ ...।
क्या आपको गुस्सा आ रहा है ?
 
लिख लो —
मैं एक अरब हूँ
मेरे नाम के साथ कोई ख़िताब नहीं है
इस मुल्क में सब्र पीता रहता हूँ
जहाँ सब गुस्से से भरे रहते हैं
मेरे जड़ें
मेरी पैदाइश के पहले से मौजूद हैं
सदियों के पहले से
चीड़ और जैतून की आमद के पहले से
घास के उगने के पहले से
मेरे अब्बा हल जोतने वाले परिवार से आते हैं
किसी बड़े घराने से नहीं
और मेरे दादा जान एक खेतिहर थे
वह न तो खाते-पीते परिवार से थे
और न ही उनका लालन पालन अच्छे से हुआ था
फिर भी ककहरा पढ़ाने के पहले
उन्होंने सूरज की तरह
फ़क्र करने की तालीम दी
और टहनियों और बांसों से बना मेरा घर
एक पहरेदार की झोपड़ी की तरह है
क्या आप मेरी हैसियत से मुतमईन हैं
वैसे मेरे नाम के साथ कोई ख़िताब नहीं है ...।
 
लिख लो —
मैं एक अरब हूँ
तुमने हमारे पुरखों के फलों के बगीचे चुराए हैं
वे खेत भी जिनपर मैं अपने बच्चों के साथ
खेती करता था
तुमने हमारे लिए कुछ भी नहीं छोड़ा
इन चट्टानों के सिवा
क्या सरकार इसे भी छीन लेगी
जैसा कहा जा रहा है
ऐसे में
पहले पन्ने के सबसे ऊपर लिख लो
मैं लोगों से न तो नफ़रत करता हूँ
न ही मैं हथियाता हूँ ज़मीन
मगर मुझे यदि भूख लगती है
तो बेदख़ल करनेवालों का गोश्त
मेरा खाना होगा
मेरी भूख से होशियार रहिए
मेरे गुस्से से बचिए ...।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास
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