भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहचान / विजय चोरमारे / टीकम शेखावत

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:45, 12 फ़रवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजय चोरमारे |अनुवादक=टीकम शेखाव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वैसे हर घर की होती है अपनी एक पहचान
अनेक घर हों अगर एक जैसे तब भी

शहर का फ़लाना-फ़लाना हिस्सा ,
इतना पता नहीं होता पर्याप्त कई बार
रास्ते का नाम, कॉलोनी और गली
का भी करना पड़ता है उल्लेख
पिन कोड के साथ

इन्दिरा गाँधी नगर नाम से होती हैं
कई सारी झुग्गियाँ
एक ही शहर में
गजानन महाराज नगर, स्वामी समर्थ नगर
नाम से भी
मध्यमवर्गियों की होगी कॉलोनी एक-एक
ऐसा भी नहीं
फिर भी लोगों को मिल ही जाता हैं घर
पते से
और चिट्ठियाँ भी पहुँचती हैं हर एक को
देर-सबेर ही सही

घर का नम्बर और दरवाज़े की पाटी
कोई खास काम में नहीं आती
कई लोगों को तो अपने घर का नम्बर भी
नहीं होता पता
नाम की पाटी भी नहीं पढ़ सकते रास्ते पर से
ऐसे में
लिखित पते के मुक़ाबले
आसपास के निशान
ही आते हैं काम
जैसे
आम के पेड़ से पूर्व की ओर तीसरा घर
जिसके सामने बिजली का खम्बा है
वगैरह
वैसे तो कई जगहों पर पेड़ होते है
घरों के रंग भी होते है एक जैसे
तब भी
आसपास के निशान होते हैं अलग अलग

मान लीजिए
कुछ सालों बाद पहचानवाला पेड़ ही काट दिया जाए
यातायात में व्यवधान समझकर…

पेड़ के टूटने पर भी
इनसान होंगे, घर भी होगा
इनसान होकर भी भुला दिया जाएगा शायद
टूटने पर भी याद रहेगा पेड़
उसका हरित सरसराना
यहाँ था एक पेड़
जो याद आए बग़ैर नही रहेगा
रास्ते से आने-जाने वालों को

घर की पहचान बनी रहती है
पेड़ की पहचान बनी रहती हैं
बस आदमी की पहचान धुँधली होती चली जाती है
कितनी ही कोशिश की जाए बनाए रखने की, तब भी।

मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत