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पहला अंक / धर्मवीर भारती

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::पहरा दे देकर <br>
::अब थके हुए हैं हम <br>
::अब चुके हुए हैं हम <br>
[चुप होकर वे आर-पार घूमते हैं। सहसा स्टेज पर प्रकाश धीमा हो जाता है। नेपथ्य से आँधी की-सी ध्वनि आती है। एक प्रहरी कान लगाकर सुनता है, दूसरा भौंहों पर हाथ रख कर आकाश की ओर देखता है।]<br>
प्रहरी 1. सुनते हो <br>
::कैसी है ध्वनि यह <br> ::भयावह ?<br>
प्रहरी 2. सहसा अँधियारा क्यों होने लगा <br>
::देखो तो <br> ::दीख रहा है कुछ ?<br>
प्रहरी 1. अन्धे राजा की प्रजा कहाँ तक देख ?<br>
::दीख नहीं पड़ता कुछ<br> ::हाँ, शायद बादल है<br>
[दूसरा प्रहरी भी बगल में आकर देखता है और भयभीत हो उठता है]<br>
प्रहरी-2. बादल नहीं है<br> ::वे गिद्ध हैं<br>
लाखों-करोड़ों<br>
पाँखें खोले<br>
[पंखों की ध्वनि के साथ स्टेज पर और भी अँधेरा]<br>
प्रहरी-1. लो<br>
::सारी कौरव नगरी<br>::का आसमान<br>::गिद्धों ने घेर लिया<br>
प्रहरी-2. झुक जाओ<br>
::झुक जाओ<br>::ढालों के नीचे<br>::छिप जाओ<br>::नरभक्षी हैं<br>::वे गिद्ध भूखे हैं।<br>
[प्रकाश तेज होने लगता है]<br>
प्रहरी-1. लो ये मुड़ गये<br>
::कुरुक्षेत्र की दिशा में<br>
[आँधी की ध्वनि कम होने लगती है]<br>
प्रहरी-2. मौत जैसे <br>
::ऊपर से निकल गयी<br>
प्रहरी-1. अशकुन है<br>
::भयानक वह।<br> ::पता नहीं क्या होगा<br> ::कल तक<br> ::इस नगरी में<br>
[विदुर का प्रवेश, बाईं ओर से]<br>
प्रहरी-1. कौन है ?<br>
विदुर . मैं हूँ<br> ::विदुर<br> ::देखा धृतराष्ट्र ने<br> ::देखा यह भयानक दृश्य ?<br>
प्रहरी-1. देखेंगे कैसे वे ?<br>
::अन्धे हैं।<br> ::कुछ भी क्या देख सके<br> ::अब तक<br> ::वे ?<br>
विदुर. मिलूँगा उनसे मैं<br>
::अशकुन भयानक है<br> ::पता नहीं संजय<br> ::क्या समाचार लाये आज ?<br>
[प्रहरी जाते हैं, विदुर अपने स्थान पर चिन्तातुर खड़े रहते हैं। पीछे का पर्दा उठने लगता है।]<br>
::कथा गायन<br>
है कुरुक्षेत्र से कुछ भी खबर न आयी<br>
जीता या हारा बचा-खुचा कौरव-दल<br>