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"पहला पानी / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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पहला पानी गिरा गगन से
 
पहला पानी गिरा गगन से
उमँड़ा आतुर प्यार,
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उमड़ा आतुर प्यार,
हवा हुई, ठंढे दिमाग के जैसे खुले विचार ।
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हवा हुई, ठण्डे दिमाग के जैसे खुले विचार ।
 
भीगी भूमि-भवानी, भीगी समय-सिंह की देह,
 
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भीगा अनभीगे अंगों की
 
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प्राण-प्राणमय हुआ परेवा,भीतर बैठा, जीव,
 
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द्रवीभूत प्राकृत आनंद अतीव ।
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रूप-सिंधु की
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लहरें उठती,
 
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खुल-खुल जाते अंग,
 
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00:57, 9 मार्च 2021 के समय का अवतरण

पहला पानी गिरा गगन से
उमड़ा आतुर प्यार,
हवा हुई, ठण्डे दिमाग के जैसे खुले विचार ।
भीगी भूमि-भवानी, भीगी समय-सिंह की देह,
भीगा अनभीगे अंगों की
अमराई का नेह
पात-पात की पाती भीगी-पेड़-पेड़ की डाल,
भीगी-भीगी बल खाती है
गैल-छैल की चाल ।
प्राण-प्राणमय हुआ परेवा,भीतर बैठा, जीव,
भोग रहा है
द्रवीभूत प्राकृत आनन्द अतीव ।
रूप-सिन्धु की
लहरें उठती,
खुल-खुल जाते अंग,
परस-परस
घुल-मिल जाते हैं
उनके-मेरे रंग ।
नाच-नाच
उठती है दामिने
चिहुँक-चिहुँक चहुँ ओर
वर्षा-मंगल की ऐसी है भीगी रसमय भोर ।
मैं भीगा,
मेरे भीतर का भीगा गंथिल ज्ञान,
भावों की भाषा गाती है
जग जीवन का गान ।