बदली के संग आई वर्षा मृदंग लाई बिजुरी के जैसी अदा भी साथ-साथ में
मनवा में झूम-झूम बिजुरी-सी घूम-घूम इतरा रही थी वह बात बिना बात में
जाने क्या हो गया मैं सपनों में खो गया भीगता देख उसे बरसात में
रात और प्रभात में न अंतर जान पड़े सुधि बुधि खो गई पहली मुलाकात में