भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पहलू / भारती पंडित

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कभी देखा है उस मजदूर का घर ?
जो हमारे सपनों का आशियाँ बनाता है ,
रिसती छत, टूटती दीवारें
यहीं कुछ उसके हिस्से में आता है .

कभी देखी है उस किसान की रसोई?
जो हमारे लिए अनाज उगाता है,
मोटा चावल ,पानी भरी दाल
यहीं कुछ उसके हिस्से में आता है .

इस समाज का ढांचा ही कुछ ऐसा है ,
चाहकर भी कोई कुछ न कर पाता है ,
मेहनत तो आती है किसी और के हिस्से
और मुनाफे के लड्डू कोई और खाता है.