Last modified on 30 दिसम्बर 2017, at 15:07

पहले तो ख़ुद की जान, को सोचा / संजू शब्दिता

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:07, 30 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजू शब्दिता |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पहले तो ख़ुद की जान, को सोचा
बाद उसके जहान को सोचा

ज़िन्दगी भर ज़मीन का खाये
मरने तक आसमान को सोचा

तीर सारे निकल गए आख़िर
कब किसी ने कमान को सोचा

तंग बेरोज़गारी से आकर
आख़िरश अब दुकान को सोचा

आज शालीन पेश आया वो
हमने उसके गुमान को सोचा

वो ज़मींदोज़ हो गया तब से
जब से हमने उड़ान को सोचा