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पहले तो ख़ुद की जान, को सोचा / संजू शब्दिता

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पहले तो ख़ुद की जान, को सोचा
बाद उसके जहान को सोचा

ज़िन्दगी भर ज़मीन का खाये
मरने तक आसमान को सोचा

तीर सारे निकल गए आख़िर
कब किसी ने कमान को सोचा

तंग बेरोज़गारी से आकर
आख़िरश अब दुकान को सोचा

आज शालीन पेश आया वो
हमने उसके गुमान को सोचा

वो ज़मींदोज़ हो गया तब से
जब से हमने उड़ान को सोचा