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"पहाड़ी-पथिक अब शेष नहीं / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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+ | तुम भी डूबे व्यभिचार में | ||
+ | हम खोए वृथा प्रचार में | ||
+ | ओ पहाड़ से नीचे बहने वालो! | ||
+ | क्या पाओगे दूषित संसार में | ||
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02:34, 29 जून 2019 के समय का अवतरण
तुम खोए रहे व्यापार में
हम उलझे रहे निज हार में
उस कोंपल को क्या आशा
जो झुलसाई गई बहार में
सब व्यस्त यहाँ उपहार में
मन रमता नहीं उद्गार में
पहाड़ी-पथिक अब शेष
नहीं जीवन बीता पल चार में
पवन चल रही मरु-थार में
झरने-नदियाँ बिके बाज़ार में
निर्ममता से हिमखंड ऐसे गले
ज्यों घी गल जाए अंगार में
तुम भी डूबे व्यभिचार में
हम खोए वृथा प्रचार में
ओ पहाड़ से नीचे बहने वालो!
क्या पाओगे दूषित संसार में