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"पहाड़ों में आतंक / मनोज श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

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जिनसे सीढ़ियाँ चढ़,
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निराकार शिलाओं पर
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हर पल डरे-सहमे उनसे
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जो छिप गए
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उन नगराकार शिलाओं में
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ये पौराणिक घुसपैठिए
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करवट बदलते ही,
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बरपा देते हैं--
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काले-कटखौवे कहर
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किसी भी पहर,
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तब, टूट पड़ती हैं
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पहाड़ी बांहों पर
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दोलित शिलाएं,
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थर्रा उठाते हैं
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रोएंदार वृक्ष,
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अनाथ-से विच्छिन्न गाँव,
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टूटकर बसती बावली बस्तियां,
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फड़फड़ाते परिंदे,
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खरगोशाकार चूहे,
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कुत्ते और बिल्लियाँ
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सदियों पहले से
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समा गया कहाँ से
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रातों-रात यह आतंक
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पहाड़ों में,
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कि लोग पल-पल
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चिहुँकते रहते हैं
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घटा-सरीखे समाए--
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यहाँ से वहां तक
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अन्दर से बाहर तक
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बिस्तर-बिछौनों से
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बक्सों-बस्तों तक
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उन गुम्फाकार अभेद्य कुहासों से
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जो इस घुसपैठिए के इशारे पर
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फट पड़ते हैं
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पलक झपकते
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जलीय जलजले जैसे
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और आकंठ मृत्यु-बिंदु तक
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निमग्न कर देते हैं उन्हें--
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जिन्हें पता नहीं था
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कि अगली सुबह
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न उठ पाने के लिए
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वे इतनी गहरी नींद
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सोए क्यों थे,
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जिन्हें पता नहीं था
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कि सर्पीला पानी नीचे से रेंगकर
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सैकड़ों मील ऊपर चढ़
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उन्हें डसने आया कैसे
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हे विज्ञान!
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यह सब अवैज्ञानिक
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हुआ कैसे?
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पुराणदेवों!
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आखिर, इस अदृश्य आतंक का
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हुलिया क्या है?
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कोई तो बताए
 +
उसकी एनाटोमी
 +
और फिजियोलोजी क्या है?

16:23, 30 जुलाई 2010 के समय का अवतरण


पहाड़ों में आतंक


कहाँ से आए वे--
घुमावदार घाटियों से
या घनेरे घरों से,
घासी-मखमली जीनों से चढ़कर
मुड़कर देखे बिना
बढ़ते ही गए वे
और दिव्याकार शिलाओं में
समाकर कच्ची नींद
सो गए

चट्टानों से चिपके घरोंदे
जिनसे सीढ़ियाँ चढ़,
निराकार शिलाओं पर
झूलते-लटकते हाट-मेले
बाजारों में दूकान
दुकानों में खरीदार
हर पल डरे-सहमे उनसे
जो छिप गए
उन नगराकार शिलाओं में

ये पौराणिक घुसपैठिए
करवट बदलते ही,
बरपा देते हैं--
काले-कटखौवे कहर
किसी भी पहर,
तब, टूट पड़ती हैं
पहाड़ी बांहों पर
दोलित शिलाएं,
थर्रा उठाते हैं
रोएंदार वृक्ष,
अनाथ-से विच्छिन्न गाँव,
टूटकर बसती बावली बस्तियां,
छिटककर-छिटककर
फड़फड़ाते परिंदे,
खरगोशाकार चूहे,
कुत्ते और बिल्लियाँ

सदियों पहले से
समा गया कहाँ से
रातों-रात यह आतंक
पहाड़ों में,
कि लोग पल-पल
चिहुँकते रहते हैं
घटा-सरीखे समाए--
यहाँ से वहां तक
अन्दर से बाहर तक
बिस्तर-बिछौनों से
बक्सों-बस्तों तक
उन गुम्फाकार अभेद्य कुहासों से
जो इस घुसपैठिए के इशारे पर
फट पड़ते हैं
पलक झपकते
जलीय जलजले जैसे
और आकंठ मृत्यु-बिंदु तक
निमग्न कर देते हैं उन्हें--
जिन्हें पता नहीं था
कि अगली सुबह
न उठ पाने के लिए
वे इतनी गहरी नींद
सोए क्यों थे,
जिन्हें पता नहीं था
कि सर्पीला पानी नीचे से रेंगकर
सैकड़ों मील ऊपर चढ़
उन्हें डसने आया कैसे

हे विज्ञान!
यह सब अवैज्ञानिक
हुआ कैसे?

पुराणदेवों!
आखिर, इस अदृश्य आतंक का
हुलिया क्या है?

कोई तो बताए
उसकी एनाटोमी
और फिजियोलोजी क्या है?