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पहाड़ पर एक जगहः समरहिल / सत्यनारायण स्नेही

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पहाड़ दर पहाड़
लांघकर
पहुंचता है आदमी
उन्होंने
इस पहाड़ को
समरहिल कहा
पहाड़ समरहिल हो गया
अब यहाँ
ठण्ड में गर्मी पर बात होती है
बर्फ़ में भी आता है पसीना
यह वही जग़ह है
जहां सूरज
आसमान में नहीं
छत के नीचे चमकता है
इस पहाड़ पर उगे
हर पेड़ के पत्ते का
अपना रंग है
जो हर मौसम में रहता है एक जैसा
तुम
अगर देश को सतह तक
जानना चाहते हो
तो इन पेड़ों को गौर से देखो
ये गर्मी से नहीं
ठण्ड से मुरझा रहें हैं
तुम
इनके पास जाओ
तो खुद महसूस करोगे
ये पेड़
बिना आग के
अंगारे हैं