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पहाड़ / बालकृष्ण गर्ग

कोई न मुझे सकता उखाड़,
कोई न मुझे सकता पछड़;
मत करना मुझसे छेदछाड़,
मैं हूँ भारी-भरकम पहाड़।
[रचना: 7 मई 1996]