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पहेली बूझने में / योगेन्द्र दत्त शर्मा

जूझने में!
कट गया दिन फिर पहेली
बूझने में!

एक मछुआ
डालता है जाल जल में
किन्तु फंस पाती न मछली
सिर्फ कछुआ
युक्ति भी आती न कोई
सूझने में!

एक कुचला दर्प
बैठा है समय की कुंडली पर
फन उठाये
बन विषैला सर्प
सारी उम्र गुजरी, नागदह को
पूजने में!

एक उन्मन मौन
घहराया हुआ
परिवेश से यक-ऊब
तोड़े कौन?
अब तो व्यस्त हैं स्वर, खंडहरों में
गूंजने में!