भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाँच मुक्तक / गिरिराज शरण अग्रवाल

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:59, 25 अक्टूबर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गिरिराज शरण अग्रवाल }} {{KKCatKavita‎}} <poem> '''1. बंजरों में ज…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.
बंजरों में जल मिलेगा, प्यास तो बाकी रहे
दिल के अंदर दर्द का एहसास तो बाकी रहे
किसलिए बे-आस होकर राह तकना छोड़ दूँ
कोई आए या न आए, आस तो बाकी रहे

2.
जिनको पानी है सफलता, जिनको करना है सफर
ठोकरें खाते हैं पर हटते नहीं हैं राह से
अंकुरित होता है पौधा दोस्त धरती चीरकर
कितना कोमल है, मगर भरपूर है उत्साह से

3.
शांत मुस्कानें अधर पर फैलती खिलती रहें
घर में बस धन ही नहीं हो, प्यार का सागर भी हो
मन के भीतर भी अँधेरे रास्तें है हर तरफ़
रोशनी बाहर नहीं इंसान के भीतर भी हो

4.
जिंदगी धरती से कटकर अर्थ से कट जाएगी
अपनी इस धरती के बदले आस्माँ मत लीजिए
सिर्फ़ रिश्ता ही नहीं, टूटेगा मन भी आपका
दोस्तों का भूलकर भी इम्तिहाँ मत लीजिए

5.
मोह को घर-बार के मत साथ में लेकर चलो
यात्रा से जब भी लौटोगे तो घर आ जाएगा
सिर्फ साहस ही नहीं, धीरज भी तो दरकार है
सीढ़ियाँ चढ़ते रहो, अंतिम शिखर आ जाएगा