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पाँव में छाले बहुत हैं / उर्मिल सत्यभूषण

पांव में छाले बहुत हैं
सामने सब शूलपथ हैं
प्राण भी चाहे श्लथ हैं
किन्तु रोके क्या जमाना
जिसने ठाना, बढ़ते जाना
बस निरंतर बढ़ते जाना
जिसके अंतर में है ज्वाला
धधकती है ज्वाल माला
जिसको खुद अग्नि ने पाला
बिजलियों से क्या डराना
जिसने ठाना जलते जाना
बस निरन्तर जलते जाना
उम्र की बढ़ती शिराओं
वीतरागी मत बनाओ
मत समाधि में बिठाओ
योग क्या उसको सिखाना
जिसने जाना उड़ते जाना
बस निरन्तर उड़ते जाना
सूर्य का टूटा सिरा हूँ
धूर्णन करती धरा हूँ
रास्तों में स्वयंवरा हूँ
उसको मंज़िल क्या दिखना
जिसने ठाना चलते जाना
बस निरन्तर चलते जाना।