भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पांणत / रेंवतदान चारण

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:05, 3 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेंवतदान चारण |संग्रह=चेत मांनखा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

माळ फिरै ज्यूं पनड़ी बाजै, फिरै काळियौ डोरौ
ओडूं पांणी भरै घड़लियां, आगै हालै धोरौ
रूपर रेत रे!

पैलौ जोटौ आवै है, पांणतिया वीरा चेत रे
कोई पांणत गंगा ऊतरै!

धौरै पांणी ढळै ढाळियौ दै माटी रौ घींयौ
कोरवांण में करै चांनणौ, दीवाळी रौ दीयौ
आभै ऊपर हंसै किरतियां, मन बिलमावै बौरौ
जूनां हेत रे!

माळ फिरै ज्यूं पनड़ी बाजै, फिरै काळियौ डोरौ
ओडूं पांणी भरै घड़लियां आगै हालै धोरौ
रूपल रेत रे!

पैलौ जोटो आवै है, पांणतियां वीरा चेत रे
कोई पांणत गंगा ऊतरै!

आडंग आवै मावटै रौ, पड़ण लागज्या पाळौ
हेमाळै सूं होड करणनै, ऊभौ खेत रूखाळौ
सीयाळै री रात में, भाई पांणत करणौ दोरौ
ठंडा खेत रे!

माळ फिरै ज्यूं पनड़ी बाजै, फिरै काळियौ डोरौ
ओडूं पांणी भरै घड़लियां, आगै हालै धोरौ
रूपल रेत रे!

पैलौ जोटौ आवै है, पांणतिया वीरा चेत रे
कोई पांणत गंगा ऊतरै!

भारत में भागीरथ लायौ, भाखर ढळती गंगा
पण थेट पताळां नीर निवायौ, आवै पांणत गंगा
लीली खेती लहरावै है, दै पांणतियौ पौरौ
साख समेत रे!

माळ फिरै ज्यूं पनड़ी बाजै, फिरै काळियौ डोरौ
ओडूं पांणी भरै घड़लियां, आगै हालै धोरौ
रूपल रेत रे!

पैलौ जोटौ आवै है, पांणतिया वीरा चेत रे
कोई पांणत गंगा ऊतरै!