भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाखी / अर्जुनदेव चारण

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:09, 19 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: <poem>सावचेत हौ चुग्गौ चुगजै दांणां रै पेटै मत लीजै पींजरौ अडांणै मत …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सावचेत हौ चुग्गौ चुगजै
दांणां रै पेटै
मत लीजै पींजरौ
अडांणै मत राखजै
गाढ करार
आभै रौ छळ
पांखा कूंतजै
जीव-जूंण रौ अमर भरोसौ
सब नै दीजै
उडतौ रैइजै ।