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पाणी / कृष्ण वृहस्पति

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म्हैं तिसायो नीं मरियो हो
जे आ बात
म्हारै बैरियां नै ठाह लागज्या
तो बै मेरी छमाई रो
घड़ियो तांई कोनी भरण देवै।

मेह रै खातर म्हारी लड़ाई
बादळां स्यूं नीं
सीधी इंदर स्यूं ई ही
जे आ बात
कुआं नै सुणज्या तो बै
सौ हाथ ओर उंडा हूज्यावै।

बादळां ने देख‘र
घड़ियां फोड़ण री कैबत
म्हारै तांई नी कथीजी।
म्हे तो पाणी नै
चड़स स्यूं नितारां अर
चळू स्यूं बरतां हा।

पाणी रै खातर लोईरस्सो
म्हारो सुभाव तो नीं है
पण मेह नीं आण रा समचार सुण‘र ई
म्हारै गोडां पाणी नीं पड़ ज्यावै।
आ दुनियां तो फकत पाणी पीवै है
पण म्हारी तो आंख रै मायं
ओ बैरी जीवै है।