भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पाणी / मोहन पुरी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:07, 27 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन पुरी |अनुवादक= |संग्रह=थार-सप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जुगां-जुगां सूं
हथेळियां री ओक बिचाळै
मिनख पी रियो है इमरत
अर मिटाय रियो है आपणी तिरस...।
सिरजण रा रूंख बोय नै
करै है संस्कृति रो बधापो...।
पण! लारलै कई दिनां सूं
पाणी सिर माथै गुजर रियो है
मानखो ईब पाणी री राड़ कर रियो है
अर पाणी बी...
हो रियो है त्यार
मानखां री भीड़ नै निगळबा खातर...।