Last modified on 27 जून 2017, at 14:07

पाणी / मोहन पुरी

जुगां-जुगां सूं
हथेळियां री ओक बिचाळै
मिनख पी रियो है इमरत
अर मिटाय रियो है आपणी तिरस...।
सिरजण रा रूंख बोय नै
करै है संस्कृति रो बधापो...।
पण! लारलै कई दिनां सूं
पाणी सिर माथै गुजर रियो है
मानखो ईब पाणी री राड़ कर रियो है
अर पाणी बी...
हो रियो है त्यार
मानखां री भीड़ नै निगळबा खातर...।