"पात टूटकर डाल से / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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जीवन तपता थार था, दूर- दूर सुनसान । | जीवन तपता थार था, दूर- दूर सुनसान । | ||
तुमसे मिल क्या चाहिए ,ईश्वर से वरदान। | तुमसे मिल क्या चाहिए ,ईश्वर से वरदान। | ||
− | + | 177 | |
बहुत दूर जाकर बसे, मन के इतने पास। | बहुत दूर जाकर बसे, मन के इतने पास। | ||
तेरा मन जब हो दुखी,मैं भी बहुत उदास।। | तेरा मन जब हो दुखी,मैं भी बहुत उदास।। | ||
− | + | 178 | |
तेरे मन जब- जब जगी,राई भर भी पीर। | तेरे मन जब- जब जगी,राई भर भी पीर। | ||
पर्वत मेरे मन बनी,करती रोज़ अधीर।। | पर्वत मेरे मन बनी,करती रोज़ अधीर।। | ||
− | + | 179 | |
मन में या परदेस में,रहो कहीं तुम दूर। | मन में या परदेस में,रहो कहीं तुम दूर। | ||
मुझको केवल चाहिए, प्यार सदा भरपूर।। | मुझको केवल चाहिए, प्यार सदा भरपूर।। | ||
− | + | 180 | |
जितने सारे नाम हैं , वे सारे बेकार। | जितने सारे नाम हैं , वे सारे बेकार। | ||
रिश्ता केवल एक है, मन का मन से प्यार। | रिश्ता केवल एक है, मन का मन से प्यार। | ||
− | + | 181 | |
तेरे पग जिस मग चलें, बिछें वहाँ पर फूल। | तेरे पग जिस मग चलें, बिछें वहाँ पर फूल। | ||
आगे आगे मैं चलूँ, चुनता सारे शूल।। | आगे आगे मैं चलूँ, चुनता सारे शूल।। | ||
− | + | 182 | |
साँस- साँस करती सदा,बस इतनी मनुहार। | साँस- साँस करती सदा,बस इतनी मनुहार। | ||
खुशियाँ ही बैठी रहें, हर पल तेरे द्वार।। | खुशियाँ ही बैठी रहें, हर पल तेरे द्वार।। | ||
− | + | 183 | |
यश -वैभव का क्या करूँ, यह सब गहरे कूप। | यश -वैभव का क्या करूँ, यह सब गहरे कूप। | ||
मेरे प्रिय को दीजिए,सारे सुख की धूप।। | मेरे प्रिय को दीजिए,सारे सुख की धूप।। | ||
− | + | 184 | |
यही कामना एक है,मुस्कानें हों द्वार। | यही कामना एक है,मुस्कानें हों द्वार। | ||
ताप कभी आएँ नहीं,बरसे केवल प्यार।। | ताप कभी आएँ नहीं,बरसे केवल प्यार।। | ||
− | + | 185 | |
जीवन में हमको मिले, कुछ ऐसे किरदार। | जीवन में हमको मिले, कुछ ऐसे किरदार। | ||
मानों ईश्वर ने लिया,प्रेम -पगा अवतार।। | मानों ईश्वर ने लिया,प्रेम -पगा अवतार।। | ||
− | + | 186 | |
आँखों में निर्मल भरा, निर्झर जैसा प्यार। | आँखों में निर्मल भरा, निर्झर जैसा प्यार। | ||
सारा सुख पहना गए,उन बाहों के हार | सारा सुख पहना गए,उन बाहों के हार | ||
− | + | 187 | |
'''पात टूटकर डाल से,कभी न आए हाथ।''' | '''पात टूटकर डाल से,कभी न आए हाथ।''' | ||
पर वे मिलकर ही रहे , जिनका सच्चा साथ।। | पर वे मिलकर ही रहे , जिनका सच्चा साथ।। | ||
− | + | 18 | |
मानव का जीवन मिला, किए दानवी काम। | मानव का जीवन मिला, किए दानवी काम। | ||
− | जागे थे | + | जागे थे नफ़रत लिये,हाथ कलह का थाम।। |
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21:26, 14 मई 2019 का अवतरण
176
जीवन तपता थार था, दूर- दूर सुनसान ।
तुमसे मिल क्या चाहिए ,ईश्वर से वरदान।
177
बहुत दूर जाकर बसे, मन के इतने पास।
तेरा मन जब हो दुखी,मैं भी बहुत उदास।।
178
तेरे मन जब- जब जगी,राई भर भी पीर।
पर्वत मेरे मन बनी,करती रोज़ अधीर।।
179
मन में या परदेस में,रहो कहीं तुम दूर।
मुझको केवल चाहिए, प्यार सदा भरपूर।।
180
जितने सारे नाम हैं , वे सारे बेकार।
रिश्ता केवल एक है, मन का मन से प्यार।
181
तेरे पग जिस मग चलें, बिछें वहाँ पर फूल।
आगे आगे मैं चलूँ, चुनता सारे शूल।।
182
साँस- साँस करती सदा,बस इतनी मनुहार।
खुशियाँ ही बैठी रहें, हर पल तेरे द्वार।।
183
यश -वैभव का क्या करूँ, यह सब गहरे कूप।
मेरे प्रिय को दीजिए,सारे सुख की धूप।।
184
यही कामना एक है,मुस्कानें हों द्वार।
ताप कभी आएँ नहीं,बरसे केवल प्यार।।
185
जीवन में हमको मिले, कुछ ऐसे किरदार।
मानों ईश्वर ने लिया,प्रेम -पगा अवतार।।
186
आँखों में निर्मल भरा, निर्झर जैसा प्यार।
सारा सुख पहना गए,उन बाहों के हार
187
पात टूटकर डाल से,कभी न आए हाथ।
पर वे मिलकर ही रहे , जिनका सच्चा साथ।।
18
मानव का जीवन मिला, किए दानवी काम।
जागे थे नफ़रत लिये,हाथ कलह का थाम।।