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पानी-4 / श्रीप्रकाश मिश्र

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जब मैं पानी की ताक़त पर बात कर रहा था
मुझे अचानक याद आया चट्टान का सामर्थ्य

उसे मैंने पूर्वी घाट पर देखा था
हज़ारों मील के जल में घिरा
अकेला
तमाम चट्टानों से सैकड़ों मील दूर
निरन्तर सागर के उद्वेलन को चौतरफ़ा पीछे ढकेलता
अनादि काल से

अकिंचन में अडिग सामर्थ्य
के मुक़ाबिले अनन्त पानी में
बस इतना सामर्थ्य था
कि उसे चिकना कर लौट जाए।