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पानी का सारा गुस्सा जब पी जाता है बाँध / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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पानी का सारा गुस्सा जब पी जाता है बाँध।
दरिया को बाँहों में लेकर बतियाता है बाँध।

चट्टानों का सीना देती चीर नदी लेकिन,
बँध जाती जब दिल माटी का दिखलाता है बाँध।

पत्थर सा तन, मिट्टी सा दिल, मन हो पानी सा,
तब जनता के हित में कोई बन पाता है बाँध।

उद्भव, बचपन, यौवन इसका देखा इसीलिए,
सपनों में अक्सर मुझसे मिलने आता है बाँध।

मरते दम तक साथ नदी का देता है तू भी,
तेरी मेरी मिट्टी का कोई नाता है बाँध।