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{{KKRachna
|रचनाकार=शहरयार
|अनुवादक=
|संग्रह=शाम होने वाली है / शहरयार
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{{KKCatNazm}}<poem>
बामे-खला से जाकर देखो
 
दूर उफ़क पर सूरज-साया
 
और वहीं पर आस-पास ही
 
पानी की दीवार का गिरना
 
बोलो तो कैसा लगता है?
</poem>
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