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पानी पानी रहते हैं / ज़हीर रहमती

पानी पानी रहते हैं
ख़ामोशी से बहते हैं

मेरी आँख के तारे भी
जलते बुझते रहते हैं

बेचारे मासूम दिए
दुख साँसों का सहते हैं

जिस की कुछ ताबीर न हो
ख़्वाब उसी को कहते हैं

अपनों की हम-दर्दी से
दुश्मन भी ख़ुश रहते हैं

मस्जिद भी कुछ दूर नहीं
वो भी पास ही रहते हैं